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मिलावट: हर चीज़ में मिलावट, अब आदत बन गई है

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होश सँभालने के कुछ वर्ष बाद से ही कानों में मिलावट शब्द सुनाई देने लगा था। धनिया में, मिर्च में, काली मिर्च में फिर तेल में और उसके बाद घी में, सुनते सुनते आदत बन गई सुन ने की और दिमाग़ ने मान लिया था की अब कुछ तो शुद्ध मिलेगा नहीं इस लिये जो मिले उसी को शुद्ध मानने लगे फिर तो ऐसा महसूस होता था की अगर शुद्ध मिल गया तो अपच हो जाएगा।सब्जियों और फलों में उर्वरक/कीटनाशक अवशेष, या पोल्ट्री में एंटीबायोटिक्स, या पानी में सीसा और आर्सेनिक।फिर शुरू हुआ दवाइयों में मिलावट की कहानियों का दौर, खबरें आने लगी की कहीं फैक्ट्री में छापा पड़ा वहाँ नक़ली दवाई बन रही थी। कैसे इंसान इतना स्वार्थी और लालच में अंधा हो जाता है की मानवता को छोड़ जीवन रक्षक दवाइयों की ही नक़ल बनाने लगा। पता नहीं आगे जाँच हुई कि नहीं और अगर हुई तो क्या रिजल्ट निकाला या सब मनगढ़ंत घटना ही किसी वजह से छापी गई थी। सच्चाई का पता नहीं। सरकार ने कई सख़्त से सख़्त नियम बनाये है। पर बाज़ार में क्या असली है और क्या नक़ली पता नहीं। नक़ली नोट छापने और बाज़ार में इस्तेमाल होने की बात तो यहाँ तक आयी की नोट बंदी भी की गई पर शायद अभी भी नक़ली नोट से निजात मिली या नहीं पता नहीं हाँ यह ज़रूर है कि बैंक में या किसी दुकान पर कुछ ख़रीदें तो नोट देने पर चेक ज़रूर होता है। कपड़े भी ब्रांडेड की जगह कोई और मिल जाये तो क्या पता।लकड़ी का सामान भी बताते कुछ और होता कुछ। इलेक्ट्रॉनिक सामान की तो भरमार है। यहाँ तक कि शीतल पेय भी नक़ली बनते है ध्यान में लाया जाता है समाचारों के द्वारा। दूध, खोया और पता नहीं क्या नहीं क्या ? दूध के मामले में सहकारी समितियों ने उत्पादन को बढ़ाया है। परंतु हाल में ही संसद में साझा किए गए आँकडें बताते हैं कि वर्ष 2022-2023 में जांचे गए खाद्य नमूनों में से 25% से अधिक में मिलावट थी।खबरें पढ़ने को मिलती है। पर अब चौकना नहीं होता आदत सी हो गई है। दवाइयों के बारे में तो सरकार ने 2023 में नियमों में बदलाव भी किया यह पता नहीं की बदलाव बीमार के सुरक्षा के लिए है या नक़ली दवाई बनाने वालों के लिए। बदलाव के प्रावधानों के अनुसार, जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) विधेयक, 2023 को अगस्त 2023 में राज्य सभा द्वारा पारित किया गया था, जिसमें औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 में परिवर्तन का प्रस्ताव है।

विधेयक में निम्नलिखित परिवर्तन शामिल हैं:

कंपाउंडिंग: घटिया दवाओं के लिए कारावास के बजाय जुर्माना भरने की अनुमति देता है।

धारा 27 (डी): घटिया दवाओं के लिए दो साल तक की जेल की सजा को कंपाउंडेबल बनाता है।स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि संशोधन धारा 27 (डी) के तहत सजा को कम नहीं करता है या इसे अपराध से मुक्त नहीं करता है।औषधि एवं प्रसाधन सामग्री (संशोधन) अधिनियम, 2008 ने मिलावटी और नकली दवाओं के उत्पादन और बिक्री के लिए सख्त दंड का प्रावधान करने के लिए औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 में भी संशोधन किया। संशोधन ने इन अपराधों पर मुकदमा चलाने के लिए विशेष अदालतों की स्थापना की और पीड़ितों को मुआवजा प्रदान किया। पैसा है तो जुर्माना भर दें सब ठीक है आपकी कोई क्षति नहीं होती। आश्चर्य अभी हुआ जब खबर किसी मुख्य मंत्री द्वार आयी की प्रसिद्ध मंदिर के प्रसाद बनाने के सामानों में भी मिलावटी समान प्राप्त हुआ।सरकारी नियंत्रण में प्रसाद का कार्य होता है, बताया जाता है। आस्था के साथ भी खिलवाड़, ऐसी हिम्मत लोगों को मिलती कहाँ से है। देश में मिलावटी भोजन कितना आम है यह इसका ज्वलंत उदाहरण है। सभी को पूजा स्थलों पर गहरा भरोसा होता है। इस प्रकार की घटनायें बहुत संवेदनशील होती हैं। सार्वजनिक रूप से लगाए गए आरोपों के बाद संभव है कि कथित तौर पर सभी आपूर्ति निलंबित कर दी जायेंगी और क्रेता विक्रेता बदल जाएँगे परंतु क्या यह सुनश्चित कर पाएगा की इस प्रकार की घटनायें और जगह नहीं हो रही होंगी और यहाँ भी आगे नहीं होंगी। यह बताता है की इसकी रोक थाम के बारे मे कितना कम काम किया गया है। ऐसे आस्था के साथ खिलवाड़ मिलावट का गंभीर मुद्दा राजनीतिक विवाद को भी जन्म देता है। यह सोचने का विषय नहीं बल्कि तुरंत कार्यवाही का समय है जिस में विभिन्न पूजा स्थलों और पका हुआ भोजन वितरित करने वाले संगठनों, जांचकर्ताओं और खाद्य मिलावट सुरक्षा निरीक्षकों को खाद्य जाँच और नियंत्रण की समीक्षा करने की आवश्यकता है। पता नहीं कौन निगरानी कर रहा है | निरीक्षण की कमी लगती है।खाद्य निरीक्षण कार्य प्रणाली में बहुत ख़ामियाँ दिखायी देती हैं।मिलावट को जड़ से खत्म करने के लक्ष्य से निपटने में निरीक्षण प्रणाली शायद विफल होता रहता है। आम तौर पर होता है कि मिलावट के किसी भी मामले के सार्वजनिक होते ही छापे, जब्ती और तरह तरह के प्रतिबन्धों को लागू कर दिया जाता है। लेकिन जाँच के बाद क्या होता है कोई नहीं जानता है। प्रत्येक प्रकार के मिलावट की और गहन वैज्ञानिक जांच की आवश्यकता है। हर स्तर पर और कम अंतराल पर। इन कार्यों में लगे व्यक्तियों, अधिकारियों की भी समय समय पर जाँच होती रहनी चाहिए जिस से किसी संभावित लालच में आने की जगह अपने कार्य को ईमानदारी और निस्पक्षता से अंजाम देते रहें। उनकी सुरक्षा की भी व्यवस्था होनी चाहिए जिस से किसी भी प्रकार के दवाब में वो नहीं आयें।यह भी देखने की आवश्यकता है कि गुणवत्ता की क्या जाँच होती है, खाद्य निगरानी कितनी बार होती है, और उल्लंघन की स्थिति में स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर क्या है। स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर किसी संगठन द्वारा अपने कर्मचारियों और स्टाफ को सौंपी गई नियमित गतिविधियों को करने में सक्षम बनाने के लिए एकत्रित किए गए चरणबद्ध दिशा-निर्देशों या निर्देशों का एक संग्रह है। इस प्रकार के विषयों में यह बहुत ही ज़्यादा कारगर होती है और वैज्ञानिक विधि को अपनाने की आवश्यकता निर्देशित करता है अगर इसे लागू किया जाता है तो। जब इतना नीचे तक लालच में लोग पड़ जाते है तो हर चीज की जाँच की आवश्यकता है | क्योंकि अब तो ऐसा महसूस होता है की मिलावट देश भर में संस्थागत हो गई है।शायद इन्ही कारणों से मध्याह्न भोजन योजना लडखडा गई है।सब है लेकिन हर जगह खाद्य मिलावट जारी है।ऐसा नहीं लगता कि नियामक इस लड़ाई को जीत रहे हैं। प्रयास होते ही रहने चाहिए तभी इस गंभीर समस्या से निज़ात मिल पाएगी और मिलावट से छुटकारा शायद मिल पायेगी।

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